Lekhika Ranchi

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प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद


29.

इस मुकदमें ने सारे शहर मे हलचल मचा दी। जहाँ देखिए, यह चर्चा थी सभी लोग प्रेमशंकर के आत्म-बलिदान की प्रंशसा सौ-सौ मुँह से कर रहे थे।

यद्यपि प्रेमशंकर ने स्पष्ट कह दिया था कि मेरे लिए किसी वकील की जरूरत नहीं है, पर लाला प्रभाशंकर का जी न माना। उन्हें भय था कि वकील के बिना काम बिगड़ जायेगा। नहीं, यह कदापि नहीं हो सकता। कहीं मामला बिगड़ गया तो लोग यहीं कहेंगे कि लोभ के मारे वकील नहीं किया, उसी का फल है। अपने मन में यही पछतावा होगा। अतएव वह सारे शहर के नामी वकीलों के पास गये। लेकिन कोई भी इस मुकदमे की पैरवी करने पर तैयार न हुआ। किसी ने कहा, मुझे अवकाश नहीं है, किसी ने कोई और ही बहाना करके टाल दिया। सबको विश्वास था कि अधिकारी वर्ग प्रेमशंकर से कुपित हो रहे हैं, उनकी वकालत करना स्वार्थ-नीति के विरुद्ध है। प्रभाशंकर का यह प्रयास सफल न हुआ तो उन्होंने अन्य अभियुक्तों के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया। उनकी सहानुभूति अपने परिवार तक ही सीमित थी।

अभियोग तैयार हो गया और मैजिस्ट्रेट के इजलाश में पेशियाँ होने लगीं। थानेदार का बयान हुआ, फैजू का बयान हुआ, तहसीलदार चपरासियों और चौकीदारों के इजहार लिए गये। आठवें दिन ज्ञानशंकर इजलास के सामने आकर खड़े हुए। प्रभाशंकर को ऐसा दुःख हुआ कि वह कमरे के बाहर चले गये और एक वृक्ष के नीचे बैठकर रोने लगे। सगे भाइयों में यह वैमनस्य! पुलिस का पक्ष सिद्ध करने के लिए एक भाई दूसरे भाई के विरुद्ध साक्षी बने! दर्शकों को भी कौतूहल हो रहा था कि देखें इनका क्या बयान होता है। सब टकटकी लगाये उनकी ओर ताक रहे थे। पुलिस को विश्वास था कि इनका बयान प्रेमशंकर के लिए ब्रह्मफाँस बन जायेगा, लेकिन उनको और उनसे अधिक दर्शकों को कितना विस्मय हुआ जब ज्ञानशंकर ने लखनपुर वालों पर अपने दिल का बुखार निकाला, प्रेमशंकर का नाम तक न लिया।

सरकारी वकील ने पूछा, आपको मालूम है कि प्रेमशंकर उस गाँव में अक्सर आया-जाया करते थे।

ज्ञान-उनका उस गाँव में आधा हिस्सा है।

वकील– आप जानते हैं कि जब इन्स्पेक्टर जनरल पुलिस का दौरा हुआ था तब प्रेमशंकर ने लखनपुरवालों की बेगार बन्द करने की कोशिश की थी और तहसीलदार से लड़ने पर आमादा हो गये थे?

ज्ञान– मुझे इसकी खबर नहीं।

वकील– आप यह तो जानते ही हैं कि जब आपने बेशी लगान का दावा किया था तब प्रेमशंकर ने गाँववालों को ५०० रुपये मुकदमें की पैरवी करने के लिए दिये थे?

ज्ञान– मुझे इस विषय में कुछ नहीं मालूम है।

ज्ञानशंकर की गवाही हो गयी। सरकारी वकील का मुँह लटक गया। लेकिन दर्शक गण एक स्वर से कहने लगे, भाई फिर भी भाई ही है, चाहे एक दूसरे के खून का प्यासा क्यों न हो।
इसके बाद मिस्टर ज्वालासिंह इजलास पर आये। उन्होंने कहा, मैं यहाँ कई साल तक हाकिम बना रहा। लखनपुर मेरे ही इलाके में था। कई बार वहाँ दौरा करने गया। याद नहीं आता कि वहाँ गाँववालों से रसद या बेगार के बारे में उससे ज्यादा झंझट हुआ हो जितना दूसरे गाँव में होता है। मेरे इजलास में एक बार बाबू ज्ञानशंकर ने इजाफा लगान का दावा किया था, लेकिन मैंने उसे खारिज कर दिया था।

सरकारी वकील– आपको मालूम है कि उस मामले की पैरवी के लिए प्रेमशंकर ने लखनपुर वालों को ५०० रुपये दिये थे।

ज्वालासिंह– मालूम है। लेकिन जहाँ तक मैं समझता हूँ, उनको यह रुपये किसी दूसरे आदमी ने गाँववालों की मदद के लिए दिये थे।

वकील– आपको यह तो मालूम ही होगा कि प्रेमशंकर की उस गाँव में बहुत आमदरफ्त रहती थी।

ज्वाला– हाँ, वह ताऊन या दूसरी बीमारियों के अवसर पर अक्सर वहाँ जाते थे। यह गवाही भी पूरी हो गयी। सरकारी वकील के सभी प्रश्न व्यर्थ सिद्ध हुए।

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